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विषय वास्तु

TAJA RACHNAYEN

Sunday, December 23, 2012

" समझ रहा हूँ "


" समझ रहा हूँ "

देश के हालात समझ रहा हूँ 
है गहराई की बात समझ रहा हूँ

बहुत कुछ पाया है यारों से 
क्या होती है घात समझ रहा हूँ

सुख के दिन कब के  बीत गए 
क्या होती है रात समझ रहा हूँ

चोट के घाव तो  सब देख रहें है 
क्या होते आघात समझ रहा हूँ

चोट देकर मरहम लगाने लगे है    
क्या होती खैरात समझ रहा हूँ

दुश्मनों की पहचान तो है
यारों की औकात समझ रहा हूँ

चोट मुझे लगी दर्द  हुआ उसे 
क्या होते जज्बात समझ रहा हूँ

                     --वीरेश अरोड़ा "वीर"



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