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विषय वास्तु

TAJA RACHNAYEN

Thursday, March 21, 2013

" वो "








" वो "


बदले हालातो में ढल गया है वो 
सचमुच कितना बदल गया है वो 


जब तक साथ था मेरे ठीक था 
अब हाथ से निकाल गया है वो 


छाछ को भी फूँक कर पीने लगा 
किस हद तक संभल गया है वो 


उससे बिछड़े अरसा हुआ लकिन
लगता है जैसे कल गया है वो 


सजा-ए-मौत भी शायद ही धो पाए 
मुँह पर कालिख जो मल गया है वो  


आज होना तय था जो हादसा 
उनके आ जाने से टल गया है वो 




                            - वीरेश अरोड़ा "वीर"






2 comments:

  1. रचना की सरहाना के लिए हर्दिक आभार झा साहब ....

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