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विषय वास्तु

TAJA RACHNAYEN

Monday, April 30, 2012

अभिलाषा


    अभिलाषा


       हर रिश्ते से पहले बेटा 
       मैं भारत माँ का कहलाऊँ,
       है अभिलाषा मेरी इतनी 
       माँ की सेवा कुछ कर जाऊँ 

       क्या जात धरम मालूम नहीं 
       किस प्रान्त का हूँ क्या बतलाऊँ,
       मैं भारत माँ का बेटा हूँ
       बस हिन्दुस्तानी कहलाऊँ 

       मैं स्वार्थ भुला दूं अपने सब 
       परमार्थ के पथ को अपनाऊँ,
       हित नहीं राष्ट्र से बढ़कर कुछ 
       कोशिश कर सबको समझाऊँ 

      भ्रष्ट नहीं है कोई भारत में 
       सदाचारी है सब कह पाऊँ 
       सोने की चिड़िया का वासी 
       जग में वापस मैं कहलाऊँ 

      गाँधी जी का अनुयायी बन
       उनके पथ पर चलता जाऊँ,
       कोशिश कर उनके सपनो को 
       साकार बना कर दिखलाऊँ 

      जो अमर शहीद हैं भारत के 
      उनको न भूल कभी पाऊँ 
      और रक्षा में भारत माँ की 
      मरना हो हँस कर मर जाऊँ 



Sunday, April 29, 2012

सुख दुःख

सुख दुःख

छत पर लेटे
अक्सर चंदा
देखता हूँ
मैं तुझे
घोर अंधकार से
तारों के साथ
जूझता पता हूँ
मैं तुझे
तेरा स्वरुप
हर रात
घटता हुआ
पाता हूँ मैं
और एक दिन
सिर्फ अंधकार से
तुझको घिरा
पाता हूँ मैं
तब आभास
होता है
चंदा तेरी
लाचारी का
लेकिन
धीरे-धीरे
नित्य
जब बढ़ता है
तेरा स्वरुप
तो वही अंधकार
मेरे छत के
कोने  में 
छिपकर बैठ जाता है
और ख़ुशी से
देखता
जाता हूँ
मैं तुझे I

Saturday, April 28, 2012

क्षणिकाएं

 
 
 
तेरी हर बात भुलाने जा रहा हूँ,
तेरी हर याद मिटाने जा रहा हूँ,
रह न जाये कोई बात मेरी यादों मैं
हर बात तेरी याद किये जा रहा हूँ.
 
 
 

Saturday, April 21, 2012

गज़ल - मूल मन्त्र


मूल मन्त्र

सबसे प्यारे प्यार किये जा
प्यार बाटकर यार जिए जा

हार मिली है तुझको जिनसे 
उनको कुछ उपहार दिए जा 

दुःख देते जो तुझको हर दिन 
सुख उनको हर बार दिए जा 

बीती बातें छोड़ के प्यारे 
कल पर कुछ विचार किये जा 

क्या होना है कल क्या जाने 
खुद को तू तैयार किये जा 

ना करना चाहे तू कुछ भी 
करने का इकरार किये जा 

करनी का फल पाना होगा 
लाख भले इनकार किये जा 









Wednesday, April 11, 2012

कविता - ठूंठ




ठूंठ 

मेरे प्यार के पौधे को 
बिना किसी लालच के 
प्यार की खाद,
संयम की धूप,
विश्वास के पानी से
मैंने बड़ा किया,
अचानक 
एक दिन के
मौसम परिवर्तन से,
मेरे प्यार का पौधा 
सूखकर ठूंठ हो गया,
आज जब कभी 
पड़ती है उसपर नजर 
एक दर्द सा दिल में उठता है,
आखिर 
पूरी जिन्दगी का 
सारा प्यार
मैंने उसे 
खाद के रूप में दिया 
इसलिए 
मैं उसे फैकूंगा नहीं,
दिल का दर्द मिटाने को 
एक दूसरा पौधा लाया हूँ मैं 
दुगने प्यार और विश्वास से 
उसे बड़ा कर रहा हूं,
मैंने इस पौधे को 
उस ठूंठ के आगे खड़ा किया है .
मेरा ये पौधा 
अब फल भी देने लगा है 
मगर अपनी आगोश में 
उस ठूंठ को 
पूरी तरह 
छिपा नहीं पाया है.....


Tuesday, April 10, 2012

गज़ल (5)






गज़ल (5)



गम जुदाई का तो हंसकर सह गए 
सामने आये तो आंसू बह गए 

राजेगम दिल में रखेंगे सोचा था 
अश्क आँखों के मगर सब कह गए 


 देखकर पहचानने की कोशिशें 
उनके दिल की बात हमसे कह गए 

मुद्दतों से इंतजार उनका किया 
क्यों किया खुद सोचते ही रह गए 

ख्वाब देखे थे बहुत तन्हाई में
मिट्टी के घर की तरह सब ढेह गए 


Monday, April 09, 2012

कविता - " मैं और मरू "







" मैं और मरू "

मन करता है
मेघ बनूँ
और
नभ में छाऊं,
मरू भूमी के
कृषकों को
मैं हर्षाऊँ,
अपने कालेपन को लाकर,
खेतोँ में उनको ले जाऊं
खेत जुताऊ
मन हर्षित कर दूं,
बीज लगाते
देखूं उनको
खुश हो जाऊं,
यथोवान्छित वृष्टि करके
बंजर को उपजाऊ कर दूं,
रेगिस्तान हटाने को,
हरयाली को लाने को
फिर मन करता है
मेघ बनूँ
और नभ में छाऊं
मरुप्रदेश में हरयाली हो
और मैं मिट जाऊं .....












Sunday, April 08, 2012

आरज़ू


आरज़ू


गर मिल सके तू मुझको,
बस एक बार मिलजा,
मैँ तुझे गले लगाकर,
सारे गिले मिटा लूँ  I

::::::::
गर ये तय है मिलोगे मुझे मरके,
तो क्यूँ न मर जाऊ में तेरा क़त्ल करके ///








गज़ल- (3)






  

ना जाने क्या अब और, करना चाहता हूँ मैं,
जीना अब और नहीं, मरना चाहता हूँ मैं.
 
मर मर कर जीने से, क्या हांसिल होना है,
जी जी कर रोज़ नहीं, मरना चाहता हूँ मैं.

जीते जी खौफ रहा, मर जाने का मुझको,
मरने से अब और नहीं, डरना चाहता हूँ मैं .

हर रोज़ खुदा से मैंने, माँगा है कुछ ना कुछ,
कर्जा अब और नहीं, करना चाहता हूँ मैं .




Saturday, April 07, 2012

ग़ज़ल (2)

ग़ज़ल  (2)


जब दोस्तों के दिल मे ज्यादा छल नज़र आने लगा
तब दुश्मनो के दल मे जयादा बल नज़र आने लगा I

देख कर बिगड़ी हुई हालत हमारे देश की
आज मुझको आने वाला कल नज़र आने लगा I

जैसे तैसे अब तलक तो  खैंच  ली ये जिन्दगी
हो सकेगा अब गुजर मुस्किल नज़र आने लगा I

बन रही बिल्डिंग कई फिर बन रहा है एक शहर
फिर मुझे कटता हुआ जंगल नज़र आने लगा I


प्यार से रहने की उसने बात की जब भी अगर
आज के लोगो को वो पागल नज़र आने लगा I









राज की बात

 

राज की बात





राम राज की आशा मे, बैठे है जो नादान है वो,
हालत का वतन का ज्ञान नहीं, अज्ञानी है, अंजान है वो I 

मुखिया को अपने दल के जो अब राम बताया करते है,
उस दल का चमचा अपने को, कहता है कि हनुमान है वो I 

क्या उलझन वो सुलझाएंगे इस देश में रहने वालों की,
गैरों से नहीं जो लगता है, खुद अपने से परेशान है वो I 

वो मालिक भी बन सकते है इतिहास बताता है हमको,
जो कहते थे कुछ दिन के लिए इस देश के मेहमान है वो I 

बिन बारिश के जब खेतो मे अंकुरित बीज नहीं होते,
वो मरुभूमि के खेत नहीं, लगता है के शमशान है वो I 







Wednesday, April 04, 2012

एक प्रश्न


आज उनका आना
और मुहं फेरकर चला जाना,
याद दिलाता है
वो दिन,
जो गुजरते न थे
मिले बिन,
दीवानों की तरह
जो मिलते थे कभी,
क्यों गुजर गए
वो बनकर अजनबी ?



मंहगाई


 

मंहगाई



तेवर देखे मंहगाई के
खाने पैर विचार हो गए
बिन सब्जी खाने को रोटी
मिर्ची से तैयार हो गए.

बढ जाते है दाम तेल के
कभी किराये बदे रेल के
बिजली पानी के भी घर में
मुस्किल अब दीदार हो गए.

एक टके में कल बिकते थे
तुच्छ समझते थे जिनको हम
भाव बड़े अचानक उनके
मंत्री बन सरकार हो गए.

६४ जयंती मना चुके हम
स्वतंत्र भारत की लकिन,
जो देखे थे देश की खातिर
सपने सब बेकार हो गए.

सोचा वेतन वाले इक दिन
लें फल कुछ बच्चो के खातिर
भाव सुने तो न लेने से
इस माह फिर लाचार हो गए.

बच्चों के स्कूल खर्च में
पूरा वेतन जाता है अब,
कैसे और पढ़ाते उनको
लाखों के कर्जदार हो गए.


गर बच्चे स्कूल ना जाएँ
पढ़े नहीं अनपढ़ रह जाएँ
क्या होगा फिर कल का भारत
सोचा तो बीमार हो गए.





" एक प्रश्न " (2)

" एक प्रश्न "

गुजर गए बरस
आँख गई तरस
कर रही हूँ इंतजार
जाने कब हो जाए दिदार
खड़ी हूँ दरवाजे पर
तेरे इन्तजार में
अड़ी हूँ जिद पर
मै तेरे प्यार में
एक बार आ
बस इतना बता,
क्या मुझसे हो गयी खता,
मै यह मानू
की तू खफा है,
या ये मानू
कि तू बेवफा है ?????




गज़ल (4)


  






 गज़ल

सभी को दर्दे दिल अपना यूं बतलाया नहीं जाता.
मगर अब दर्द को दिल में छिपाया भी नहीं जाता.

सकूं मिलता मुझे इस दिल का थोडा बोझ कम होता.
मगर मैं सामने उसके कभी कुछ कह नहीं पता.

किसी को भी बता के बोझ दिल का कम तो कर लेता.
भरोसा इस ज़माने में किसी पर कर नहीं पाता.

उसी को ढूंढने में जिन्दगी सारी गवां डाली .
रहकर निगाहों में भी जो नज़र नहीं आता.




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