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विषय वास्तु

TAJA RACHNAYEN

Wednesday, April 04, 2012

एक प्रश्न


आज उनका आना
और मुहं फेरकर चला जाना,
याद दिलाता है
वो दिन,
जो गुजरते न थे
मिले बिन,
दीवानों की तरह
जो मिलते थे कभी,
क्यों गुजर गए
वो बनकर अजनबी ?



मंहगाई


 

मंहगाई



तेवर देखे मंहगाई के
खाने पैर विचार हो गए
बिन सब्जी खाने को रोटी
मिर्ची से तैयार हो गए.

बढ जाते है दाम तेल के
कभी किराये बदे रेल के
बिजली पानी के भी घर में
मुस्किल अब दीदार हो गए.

एक टके में कल बिकते थे
तुच्छ समझते थे जिनको हम
भाव बड़े अचानक उनके
मंत्री बन सरकार हो गए.

६४ जयंती मना चुके हम
स्वतंत्र भारत की लकिन,
जो देखे थे देश की खातिर
सपने सब बेकार हो गए.

सोचा वेतन वाले इक दिन
लें फल कुछ बच्चो के खातिर
भाव सुने तो न लेने से
इस माह फिर लाचार हो गए.

बच्चों के स्कूल खर्च में
पूरा वेतन जाता है अब,
कैसे और पढ़ाते उनको
लाखों के कर्जदार हो गए.


गर बच्चे स्कूल ना जाएँ
पढ़े नहीं अनपढ़ रह जाएँ
क्या होगा फिर कल का भारत
सोचा तो बीमार हो गए.





" एक प्रश्न " (2)

" एक प्रश्न "

गुजर गए बरस
आँख गई तरस
कर रही हूँ इंतजार
जाने कब हो जाए दिदार
खड़ी हूँ दरवाजे पर
तेरे इन्तजार में
अड़ी हूँ जिद पर
मै तेरे प्यार में
एक बार आ
बस इतना बता,
क्या मुझसे हो गयी खता,
मै यह मानू
की तू खफा है,
या ये मानू
कि तू बेवफा है ?????




गज़ल (4)


  






 गज़ल

सभी को दर्दे दिल अपना यूं बतलाया नहीं जाता.
मगर अब दर्द को दिल में छिपाया भी नहीं जाता.

सकूं मिलता मुझे इस दिल का थोडा बोझ कम होता.
मगर मैं सामने उसके कभी कुछ कह नहीं पता.

किसी को भी बता के बोझ दिल का कम तो कर लेता.
भरोसा इस ज़माने में किसी पर कर नहीं पाता.

उसी को ढूंढने में जिन्दगी सारी गवां डाली .
रहकर निगाहों में भी जो नज़र नहीं आता.




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