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विषय वास्तु

TAJA RACHNAYEN

Sunday, December 23, 2012

" समझ रहा हूँ "


" समझ रहा हूँ "

देश के हालात समझ रहा हूँ 
है गहराई की बात समझ रहा हूँ

बहुत कुछ पाया है यारों से 
क्या होती है घात समझ रहा हूँ

सुख के दिन कब के  बीत गए 
क्या होती है रात समझ रहा हूँ

चोट के घाव तो  सब देख रहें है 
क्या होते आघात समझ रहा हूँ

चोट देकर मरहम लगाने लगे है    
क्या होती खैरात समझ रहा हूँ

दुश्मनों की पहचान तो है
यारों की औकात समझ रहा हूँ

चोट मुझे लगी दर्द  हुआ उसे 
क्या होते जज्बात समझ रहा हूँ

                     --वीरेश अरोड़ा "वीर"



7 comments:

  1. चोट मुझे लगी दर्द हुआ उसे
    क्या होते हैं जज्बात समझ रहा हूँ

    देश के हालत समझ रहा हूँ

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  2. आभार कौशिक जी ....

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  3. दुश्मनों की पहचान तो है
    यारों की औकात समझ रहा हूँ
    वाह क्या बात है वीरेश जी
    सच में वीरों की यही तो बात होती है
    घाव होते है शरीर में किन्तु जान तो दिल में ही होती है।
    जो घावों से डर जंग छोड़ देते है
    एसे वीरों पर ही तो वीर प्रसु माँ रोती है।
    आज राज तो करते हैं लोग देश पर
    किन्तु यह नही जानते कि सैनिकों की आन क्या होती है।
    जंगें जो लड़ने की हिम्मत ही नही रखते
    उन्हीं के कारण तो धरा शर्म शार होती है
    कोई भी आकर भारत को तहस नहस कर दे
    किन्तु दिल्ली के दिल में अब कोई हलचल नही होती है।
    मर गया है दिल्ली का दिल अब तो
    क्योंकि सत्ता नही भारत के खिलाफ हर चाल होती है।
    लूट लेते हैं भारत को बाहरी लुटेरे ही
    जब जयचन्दों के हाथ दिल्ली की सरकार होती है।
    वैठे है वाजिद अली भारतीय सत्ता धीश बनकर
    जवकि भारत को विक्रम की दरकार होती है।

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  4. ज्ञानेश जी रचना का पसंद करने के लिए आभार .....

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  5. क्या बात है अरोड़ा जी ..... बहुत खूब.

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  6. bahut gaharee ...prabhaavee prastuti aapkii ....

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  7. उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आभार ज्योत्सना शर्मा जी

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