गज़ल
सभी को दर्दे दिल अपना यूं बतलाया नहीं जाता.
सभी को दर्दे दिल अपना यूं बतलाया नहीं जाता.
मगर अब दर्द को दिल में छिपाया भी नहीं जाता.
सकूं मिलता मुझे इस दिल का थोडा बोझ कम होता.
मगर मैं सामने उसके कभी कुछ कह नहीं पता.
किसी को भी बता के बोझ दिल का कम तो कर लेता.
भरोसा इस ज़माने में किसी पर कर नहीं पाता.
उसी को ढूंढने में जिन्दगी सारी गवां डाली .
रहकर निगाहों में भी जो नज़र नहीं आता.
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