welcome


विषय वास्तु

TAJA RACHNAYEN

Wednesday, April 04, 2012

मंहगाई


 

मंहगाई



तेवर देखे मंहगाई के
खाने पैर विचार हो गए
बिन सब्जी खाने को रोटी
मिर्ची से तैयार हो गए.

बढ जाते है दाम तेल के
कभी किराये बदे रेल के
बिजली पानी के भी घर में
मुस्किल अब दीदार हो गए.

एक टके में कल बिकते थे
तुच्छ समझते थे जिनको हम
भाव बड़े अचानक उनके
मंत्री बन सरकार हो गए.

६४ जयंती मना चुके हम
स्वतंत्र भारत की लकिन,
जो देखे थे देश की खातिर
सपने सब बेकार हो गए.

सोचा वेतन वाले इक दिन
लें फल कुछ बच्चो के खातिर
भाव सुने तो न लेने से
इस माह फिर लाचार हो गए.

बच्चों के स्कूल खर्च में
पूरा वेतन जाता है अब,
कैसे और पढ़ाते उनको
लाखों के कर्जदार हो गए.


गर बच्चे स्कूल ना जाएँ
पढ़े नहीं अनपढ़ रह जाएँ
क्या होगा फिर कल का भारत
सोचा तो बीमार हो गए.





No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...