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विषय वास्तु

TAJA RACHNAYEN

Sunday, April 08, 2012

गज़ल- (3)






  

ना जाने क्या अब और, करना चाहता हूँ मैं,
जीना अब और नहीं, मरना चाहता हूँ मैं.
 
मर मर कर जीने से, क्या हांसिल होना है,
जी जी कर रोज़ नहीं, मरना चाहता हूँ मैं.

जीते जी खौफ रहा, मर जाने का मुझको,
मरने से अब और नहीं, डरना चाहता हूँ मैं .

हर रोज़ खुदा से मैंने, माँगा है कुछ ना कुछ,
कर्जा अब और नहीं, करना चाहता हूँ मैं .




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