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विषय वास्तु

TAJA RACHNAYEN

Wednesday, April 11, 2012

कविता - ठूंठ




ठूंठ 

मेरे प्यार के पौधे को 
बिना किसी लालच के 
प्यार की खाद,
संयम की धूप,
विश्वास के पानी से
मैंने बड़ा किया,
अचानक 
एक दिन के
मौसम परिवर्तन से,
मेरे प्यार का पौधा 
सूखकर ठूंठ हो गया,
आज जब कभी 
पड़ती है उसपर नजर 
एक दर्द सा दिल में उठता है,
आखिर 
पूरी जिन्दगी का 
सारा प्यार
मैंने उसे 
खाद के रूप में दिया 
इसलिए 
मैं उसे फैकूंगा नहीं,
दिल का दर्द मिटाने को 
एक दूसरा पौधा लाया हूँ मैं 
दुगने प्यार और विश्वास से 
उसे बड़ा कर रहा हूं,
मैंने इस पौधे को 
उस ठूंठ के आगे खड़ा किया है .
मेरा ये पौधा 
अब फल भी देने लगा है 
मगर अपनी आगोश में 
उस ठूंठ को 
पूरी तरह 
छिपा नहीं पाया है.....


1 comment:

  1. वाह...............
    बहुत सुंदर........

    गहरे भाव बहुत सरलता से अभिव्यक्त किये हैं.....
    बहुत खूब.

    अनु

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