देश के हालात समझ रहा हूँ
है गहराई की बात समझ रहा हूँ
बहुत कुछ पाया है यारों से
क्या होती है घात समझ रहा हूँ
सुख के दिन कब के बीत गए
क्या होती है रात समझ रहा हूँ
चोट के घाव तो सब देख रहें है
क्या होते आघात समझ रहा हूँ
चोट देकर मरहम लगाने लगे है
क्या होती खैरात समझ रहा हूँ
दुश्मनों की पहचान तो है
यारों की औकात समझ रहा हूँ
चोट मुझे लगी दर्द हुआ उसे
क्या होते जज्बात समझ रहा हूँ
--वीरेश अरोड़ा "वीर"
चोट मुझे लगी दर्द हुआ उसे
ReplyDeleteक्या होते हैं जज्बात समझ रहा हूँ
देश के हालत समझ रहा हूँ
आभार कौशिक जी ....
ReplyDeleteदुश्मनों की पहचान तो है
ReplyDeleteयारों की औकात समझ रहा हूँ
वाह क्या बात है वीरेश जी
सच में वीरों की यही तो बात होती है
घाव होते है शरीर में किन्तु जान तो दिल में ही होती है।
जो घावों से डर जंग छोड़ देते है
एसे वीरों पर ही तो वीर प्रसु माँ रोती है।
आज राज तो करते हैं लोग देश पर
किन्तु यह नही जानते कि सैनिकों की आन क्या होती है।
जंगें जो लड़ने की हिम्मत ही नही रखते
उन्हीं के कारण तो धरा शर्म शार होती है
कोई भी आकर भारत को तहस नहस कर दे
किन्तु दिल्ली के दिल में अब कोई हलचल नही होती है।
मर गया है दिल्ली का दिल अब तो
क्योंकि सत्ता नही भारत के खिलाफ हर चाल होती है।
लूट लेते हैं भारत को बाहरी लुटेरे ही
जब जयचन्दों के हाथ दिल्ली की सरकार होती है।
वैठे है वाजिद अली भारतीय सत्ता धीश बनकर
जवकि भारत को विक्रम की दरकार होती है।
ReplyDeleteज्ञानेश जी रचना का पसंद करने के लिए आभार .....
क्या बात है अरोड़ा जी ..... बहुत खूब.
ReplyDeletebahut gaharee ...prabhaavee prastuti aapkii ....
ReplyDeleteउत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आभार ज्योत्सना शर्मा जी
ReplyDelete