राज की बात
राम राज की आशा मे, बैठे है जो नादान है वो,
हालत का वतन का ज्ञान नहीं, अज्ञानी है, अंजान है वो I
मुखिया को अपने दल के जो अब राम बताया करते है,
उस दल का चमचा अपने को, कहता है कि हनुमान है वो I
क्या उलझन वो सुलझाएंगे इस देश में रहने वालों की,
गैरों से नहीं जो लगता है, खुद अपने से परेशान है वो I
वो मालिक भी बन सकते है इतिहास बताता है हमको,
जो कहते थे कुछ दिन के लिए इस देश के मेहमान है वो I
बिन बारिश के जब खेतो मे अंकुरित बीज नहीं होते,
वो मरुभूमि के खेत नहीं, लगता है के शमशान है वो I
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